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लूट मची है चारों ओर | ग़ज़ल (काव्य) |
Author: राहत इंदौरी
लूट मची है चारों ओर, सारे चोर
इक जंगल और लाखों मोर, सारे चोर
इक थैली में अफसर भी, चपरासी थी
क्या ताकतवर, क्या कमजोर, सारे चोर
उजले कुर्ते पहन रखे हैं, सांपों ने
यह जहरीले आदमखोर, सारे चोर
झूठ नगर में, रोज निकालो मौन जुलूस
कौन सुनेगा सच का शोर, सारे चोर
हम किस-किस का नाम गिनाए 'राहत खां'
दिल्ली के आवारा ढोर, सारे चोर
- राहत इंदौरी