भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
 

अश्कों ने जो पाया है (काव्य)

Author: साहिर लुधियानवी

अश्कों ने जो पाया है वो गीतों में दिया है
इस पर भी सुना है कि जमाने को गिला है

जो तार से निकली है वो धुन सबने सुनी है
जो साज़ पे गुज़री है वो किस दिल को पता है

हम फूल हैं औरों के लिए लाए हैं ख़ुशबू
अपने लिए ले दे के इक दाग मिला है

-साहिर लुधियानवी

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश