मेरा सब चलना व्यर्थ हुआ, कुछ करने में न समर्थ हुआ, मेरा जीवन साँसें खो कर, पड़ गया आज निर्जन पथ पर, उस श्रम का ऐसा अर्थ हुआ!
२)
अब प्राणों में बल शेष नहीं, उर में आशा का लेश नहीं, आँखों में आँसू भरे हुए, चरणों पर किसलय झरे हुए, सूनापन फैला सभी कहीं!
- चन्द्रकुँवर बर्त्वाल |