भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
अभिशाप का वरदान (काव्य)  Click to print this content  
Author:कैलाश कल्पित

उसको ही वरदान मिला है
रूप नहीं जिसने पाया है
कौवों को आकाश मिला है
तोतों ने पिंजड़ा पाया है।

फूलों की क्यारी के ऊपर
भँवरा नित निर्द्वन्द्व उड़ा है
तितली ने जब पर फैलाए
लोगों ने उसको पकड़ा है।

गली-गली मे स्वान घूमते
उनकी खाल न छूता कोई,
मृग वन में मारा जाता है
चमड़ी का व्यापार बड़ा है।

अभिशापों का कोहरा जब जब
पथ पर बनता गया घना है,
क्षमता दिखलाने का तब-तब
वह परोक्ष वरदान बना है।

 

- कैलाश कल्पित

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