सुभाष स्वाभाविक तौर पर नेतृत्व का कौशल रखते थे। लोगों को उनके नेतृत्व पर विश्वास था। वे पढ़ाई में अव्वल थे और भारत व भारतीयों के प्रति कोई पक्षपात करे तो वे सहन नहीं कर सकते थे।
एक बार प्रेसिडैंसी कॉलेज में एक अंग्रेज प्राध्यापक ओटन ने भारतीय विद्यार्थियों के साथ अभद्रता की तो सुभाषचंद्र भड़क उठे। छात्र-प्रतिनिधि के रूप में सुभाष ने हड़ताल करवा दी व प्राध्यापक से सार्वजनिक क्षमा मांगने को कहा।
प्रधानाचार्य से इसकी शिकायत की गई लेकिन उल्टे सुभाष को ही संस्था से निष्काषित कर दिया गया। उन्हें निष्कासन का कोई पछतावा न था बल्कि प्रसन्नता थी कि वे अधिकार के लिए खड़े हुए।
प्रस्तुति - रोहित कुमार 'हैप्पी'
[ भारत-दर्शन संकलन] |