क्या संसार में कहीं का भी आप एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो। - डॉ. श्यामसुंदर दास।
हम आज भी तुम्हारे... (काव्य)  Click to print this content  
Author:भारत भूषण

हम आज भी तुम्हारे तुम आज भी पराये,
सौ बार आँख रोई सौ बार याद आये ।
इतना ही याद है अब वह प्यार का ज़माना,
कुछ आँख छलछलाई कुछ ओंठ मुसकराये ।
मुसकान लुट गई है तुम सामने न आना,
डर है कि ज़िन्दगी से ये दर्द लुट न जाए ।

कैसे बने तुम्हारी तस्वीर रूप वाले,
तस्वीर खुद बने हैं जो रंग घोल लाए ।
हर बार सोचता हूँ इस बार देख लूंगा,
पर खो गई नज़र ही जब भी पलक उठाये ।
तुम इस तरह रमे हो हर साँस में हमारी,
छिपते नहीं छिपाए, दिखते नहीं दिखाए ।

बदनाम कर दिया है ऐसा गुनाह क्या था,
ले नाम सा तुम्हारा भर नींद मुसकराये ।
इस दर्द की कसम है तब तक न साँस लूंगा,
पत्थर नयन तुम्हारे जब तक न छलछलायें ।

हर घाव ने बुलाया, हर अश्रु ने बुलाया,
हर दर्द ने बुलाया, बे-दर्द तुम न आए ।
हम सा न दूसरा है इतने बड़े जहाँ में,
जब प्यार ने बुलाया, मन्दिर से भाग आए ।

- भारत भूषण

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश