हम आज भी तुम्हारे तुम आज भी पराये, सौ बार आँख रोई सौ बार याद आये । इतना ही याद है अब वह प्यार का ज़माना, कुछ आँख छलछलाई कुछ ओंठ मुसकराये । मुसकान लुट गई है तुम सामने न आना, डर है कि ज़िन्दगी से ये दर्द लुट न जाए ।
कैसे बने तुम्हारी तस्वीर रूप वाले, तस्वीर खुद बने हैं जो रंग घोल लाए । हर बार सोचता हूँ इस बार देख लूंगा, पर खो गई नज़र ही जब भी पलक उठाये । तुम इस तरह रमे हो हर साँस में हमारी, छिपते नहीं छिपाए, दिखते नहीं दिखाए ।
बदनाम कर दिया है ऐसा गुनाह क्या था, ले नाम सा तुम्हारा भर नींद मुसकराये । इस दर्द की कसम है तब तक न साँस लूंगा, पत्थर नयन तुम्हारे जब तक न छलछलायें ।
हर घाव ने बुलाया, हर अश्रु ने बुलाया, हर दर्द ने बुलाया, बे-दर्द तुम न आए । हम सा न दूसरा है इतने बड़े जहाँ में, जब प्यार ने बुलाया, मन्दिर से भाग आए ।
- भारत भूषण
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