उड़ने लगे हैं होली की मस्ती के गुब्बारे धरती से आसमा की ठिठोली के इशारे।
कोई रंग बिरंगी सी हवाओं में बात है, जो वह भीगते बच्चों की शरारत के साथ है, बंद कर के किताबों को निकल आये हैं बाहर, पिचकारियों की मार से हंसती हैं दिवार्रें।
और हमको भी घर बैठे भला चैन कहाँ हैं? जहाँ बज रहे हैं ढोल ,निगाहें भी वहां हैं। जीवन का हर एक रंग, जतन कर के सहेजो, पेड़ों पर खिले टेसू, रह- रह कर पुकारे।
- अलका जैन ई-मेल: alka28jain@gmail.com
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