मनुष्य सदा अपनी भातृभाषा में ही विचार करता है। - मुकुन्दस्वरूप वर्मा।
एक राजनीतिक संवाद  (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:बलराम अग्रवाल 

-- सर, 'पेड़ पर उलटा लटकने' वाले में और 'हर शाख पे बैठा' होने वाले में क्या अन्तर है? 
-- एक ही डाली के चट्टे-बट्टे हैं दोनों, कोई अन्तर नहीं है। 
-- यह कैसे हो सकता है? 
-- देखिए, जब आप सत्ता में होते हैं तो सारा विपक्ष आपको उलटा लटका दिखाई देता है... और जब आप विपक्ष में होते हैं तब सत्तापक्ष का हर शख्स आपको 'शाख पे बैठा' दिखाई देता है। 

-- सर, खुद अपने बारे में कैसे पता लगाएँ कि हम क्या है? 
-- अगर आप राजनीतिक जीव नहीं हैं तो बहुत आसान है। अपनी आवाज को ध्यान से सुनो। विवेक से परखो। वह अगर सत्तापक्ष की चिरौरी करती-सी लगे तो समझ लीजिए कि एक 'शाख' पर   आप भी बैठे हैं; और अगर अंधों की तरह उसका विरोध करती-सी लगे तो समझ लीजिए कि आप पेड़ पर उलटा लटके हुओं में शामिल हैं। 
-- और राजनीतिक जीव हों, तब? 
-- तब... विवेक की बात भूल जाइए। 
-- क्यों? 
--अन्तरात्मा मर जाती है।

- बलराम अग्रवाल 
ई-मेल
: balram.agarwal1152@gmail.com

[तैरती हैं पत्तियाँ, प्रकाशक-अनुजा बुक्स, दिल्ली] 

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