भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
सत्य-असत्य में अंतर (काव्य)  Click to print this content  
Author:शरदेन्दु शुक्ल 'शरद'

मैंने चवन्नी डाली
जैसे ही आरती की थाली
सामने आई,
बाजू वाले ने
हमें घूरते हुए
सौ का पत्ता डाला
और छाती फुलाई!
तभी पीछे से किसी ने कहा,
सेठजी
घर में छापा पड़ गया है,
शहर में इज्जत का
जनाज़ा निकल गया है,
उसने चोर आंखों से
हमें देखा,
उसकी निगाह
शर्म से गड़ रही थी,
और अब मेरी चवन्नी
सौ पे भारी पड़ रही थी।

-शरदेन्दु शुक्ल 'शरद'
[हास्यस्पद से]

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