क्या संसार में कहीं का भी आप एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो। - डॉ. श्यामसुंदर दास।
पूत-कपूत | हास्य-कविता (काव्य)  Click to print this content  
Author:अल्हड़ बीकानेरी 

डैडी, मोरे अवगुन चित न धरो, 
मैं लाडलो कपूत तिहारो, मो पै गरब करो।

सोमवार, अपने कालिज को जब घेराव कर्यो 
छोड़ अन्न-जल, पूज्य प्रिंसिपल मोरे पाँव पर्यो

मंगलवार, चरस चोरी को, सिगरट बीच भर्यो 
मार्यो दम, रात भर मूढ़ सम, जम कै 'ट्विस्ट' कर्यो

बुद्धवार, जब शुद्ध भाव सों, ठर्रा पान कर्यो 
धुत्त होय, धँस गयो 'गटर' में, भोर भए उबर्यो

वीरवार, कंडक्टर पीट्यो, बस अपहरण कर्यो
बीच सड़क, भिड़ंत भई ऐसी, मंत्री एक मर्यो

'फ्राइडे' निज 'गर्ल-फ्रेंड' को, नरम 'हैंड' पकर्यो 
फोकट में दो फिलम दिखाई, पल्ले कछु न पर्यो

'सैटरडे', चढि गयो सनीचर, टीचर पीट धर्यो 
टपक पर्यो इक पुलिसमैन, मोहि रँगे हाथ पकर्यो

'संडे', मोहि जेल के भीतर, 'मामा' ठूँस धर्यो 
अब की बेर भरि जाओ जमानत या फिर डूब मरो।

-अल्हड़ बीकानेरी 

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