हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में सफलतापूर्वक साहित्य रचना करने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपने स्वाभिमानी व्यक्तित्व का परिचय निम्न कवित्त में दिया है--
सेवक गुनीजन के चाकर चतुर के हैं, कविन के मीत चित्तहित गुन गानी के। सीधेन सों सीधे महा बांके हम बांकेन सों, हरीचंद नगद दमाद अभिमानी के। चाहिबे की चाह काहू की न परवाह नेही, नेह के दिवाने सदा सूरत निवानी के। सरबस रसिक के सुदास दास प्रेमिन के, सखा प्यारे कृष्ण के गुलाम राधारानी के॥
[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र] |