मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
हे कविता (काव्य)  Click to print this content  
Author:मनीषा खटाटे

हे कविता!
हर रात सोते समय,
एक कविता को 
सपने में आने के लिये प्रार्थना करती हूँ। 

वह आती है
कुछ अनसुलझी पहेली की तरह,
सपने में भी स्वप्न जैसी
आनंद विभोर खिले हुए फूल जैसी। 

हे कविता! 
जब तुम कागज पर उतरती हो,
तो मेरे सपने भी जिंदा हो जाते हैं
हँसते-गातेऔर नाचते हैं। 

आज भी इंतजार है, हे कविता!
तरसती हूँ मैं तुम्हारे लिए,
मै देखती हूँ तन से, मन से
उठकर,
कभी अकेली। 

रात भी उमड़ती है, भोर के उजियाले के लिए
हे कविता!
इंतजार करती हूँ,
सपने में। 

-मनीषा खटाटे

Previous Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश