भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
बकरी  (काव्य)  Click to print this content  
Author:हलीम आईना

आदर्शों के 
मेमनों की
बलि

सारे-आम 
हो 
रही है,

तभी तो--
गाँधी जी की 
बकरी 

सुबक-सुबक कर 
रो
रही है। 

- हलीम आईना

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