दो पल को ही गा लेने दो। गाकर मन बहला लेने दो ! कल तक तो मिट जाना ही है; तन मन सब लुट जाना ही है ; लेकिन लुटने से पहले तो-- अपना रंग जमा लेने दो । दो पल को ही गा लेने दो। गाकर मन बहला लेने दो !
फूल खिलखिला कर हँसते हैं, फिर तो काँटे ही धंसते हैं; काँटों से पहले फूलों को--- कुछ शृंगार सजा लेने दो। दो पल को ही गा लेने दो। गाकर मन बहला लेने दो!
जीवन क्या है ? इक सपना है, सपने में सब कुछ अपना है; अपनेपन की इन घड़ियों में लघु संसार बसा लेने दो। दो पल को ही गा लेने दो। गाकर मन बहला लेने दो!
-शिवशंकर वशिष्ठ [गीली आँखें गीले गीत, 1958, दिल्ली पुस्तक सदन] |