क्या संसार में कहीं का भी आप एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो। - डॉ. श्यामसुंदर दास।
बटोही, आज चले किस ओर? (काव्य)  Click to print this content  
Author:भगवद्दत्त ‘शिशु'

नहीं क्या इसका तुमको ज्ञान,
कि है पथ यह कितना अनजान?
चले इस पर कितने ही धीर,
हुए चलते-चलते हैरान।
     न पाया फिर भी इसका छोर।
     चले हो अरे, आज किस ओर?
चले इस पर कितने ही संत,
किसी को मिला ना इसका अंत।
अलापा नेति-नेति का राग,
     न पाया फिर भी इसका छोर।
     चले हो अरे, आज किस ओर?
अरे, है अगम सत्य की शोध,
बुद्ध औ' राम कृष्ण से देव,
चले इस पद पर जीवन हार,
न पाया फिर भी इसका पार।
      बटोही, साहस को झकझोर -
      बढ़े जाते फिर भी उस ओर!

-भगवद्दत्त ‘शिशु'
[निर्झरिणी, नवयुग साहित्य सदन, इन्दौर, 1946]

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश