उस शाम हमारे बीच किसी युद्ध का रिश्ता नहीं था मैंने उसे पुकार दिया -- आओ भीतर चले आओ बेधड़क अपनी बंदूक और असलहे वहीं बाहर रख दो आस-पड़ोस के बच्चे खेलेंगे उससे यह बंदूकों के भविष्य के लिए अच्छा होगा
वह एक बहादुर सैनिक की तरह मेरे सामने की कुर्सी पर आ बैठा और मेरे आग्रह पर होंठों को चाय का स्वाद भेंट किया
मैंने कहा-- कहो कहाँ से शुरुआत करें?
उसने एक गहरी साँस ली, जैसे वह बेहद थका हुआ हो और बोला-- उसके बारे में कुछ बताओ
मैंने उसके चेहरे पर एक भय लटका हुआ पाया पर नजरंदाज किया और बोला--
उसका नाम समसारा है उसकी बातें मजबूत इरादों से भरी होती हैं उसकी आँखों में महान करुणा का अथाह जल छलकता रहता है जब भी मैं उसे देखता हूँ मुझे अपने पेशे से घृणा होने लगती है
वह जिंदगी के हर लम्हे में इतनी मुलायम होती है कि जब भी धूप भरे छत पर वह निकल जाती है नंगे पांव तो सूरज को गुदगुदी होने लगती है धूप खिलखिलाने लगती है वह दुनिया की सबसे खूबसूरत पत्नियों में से एक है
मैंनें उससे पलट पूछा और तुम्हारी अपनी के बारे में कुछ बताओ... वह अचकचा सा गया और उदास भी हुआ उसने कुछ शब्दों को जोड़ने की कोशिश की--
मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता वह बेहद बेहूदा औरत है और बदचलन भी जीवन का दूसरा युद्ध जीतकर जब मैं घर लौटा था तब मैंने पाया कि मैं उसे हार गया हूँ वह किसी अनजाने मर्द की बाँहों में थी यह दृश्य देखकर मेरे जंग के घाव में अचानक दर्द उठने लगा मैं हारा हुआ और हताश महसूस करने लगा मेरी आत्मा किसी अदृश्य आग में झुलसने लगी युद्ध अचानक मुझे अच्छा लगने लगा था
मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला-- नहीं मेरे दुश्मन, ऐसे तो ठीक नहीं है ऐसे तो वह बदचलन नहीं हो जाती जैसे तुम्हारे सैनिक होने के लिए युद्ध जरूरी है वैसे ही उसके स्त्री होने के लिए वह अनजाना लड़का
उसने मेरे तर्क के आगे समर्पण कर दिया और किसी भारी दुख से सिर झुका दिया
मैंनें विषय बदल दिया ताकि उसके सीने में जो एक जहरीली गोली अभी घुसी है उसकी कोई काट मिले--
मैं तो विकल्पहीनता की राह चलते यहाँ पहुंचा पर तुम सैनिक कैसे बने? क्या तुम बचपन से देशभक्त थे?
वह इस मुलाकात में पहली बार हँसा मेरे इस देशभक्त वाले प्रश्न पर और स्मृतियों को टटोलते हुए बोला--
मैं एक रोज भूख से बेहाल अपने शहर में भटक रहा था तभी उधर से कुछ सिपाही गुजरे उन्होंने मुझे कुछ अच्छे खाने और पहनने का लालच दिया और अपने साथ उठा ले गए उन्होंने मुझे हत्या करने का प्रशिक्षण दिया हत्यारा बनाया हमला करने का प्रशिक्षण दिया आततायी बनाया उन्होंने बताया कि कैसे मैं तुम्हारे जैसे दुश्मनों का सिर उनके धड़ से उतार लूं पर मेरा मन दया और करुणा से न भरने पाए
उन्होंने मेरे चेहरे पर खून पोत दिया कहा कि यही तुम्हारी आत्मा का रंग है मेरे कानों में हृदयविदारक चीख भर दी कहा कि यही तुम्हारे कर्तव्यों की आवाज है मेरी पुतलियों पर टांग दिया लाशों से पटी युद्ध-भूमि और कहा कि यही तुम्हारी आँखों का आदर्श दृश्य है उन्होंने मुझे क्रूर होने में ही मेरे अस्तित्व की जानकारी दी
यह सब कहते हुए वह लगभग रो रहा था आवाज में संयम लाते हुए उसने मुझसे पूछा-- और तुम किसके लिए लड़ते हो?
मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था पर खुद को स्थिर और मजबूत करते हुए कहा--
हम दोनों अपने राजा की हवस के लिए लड़ते हैं हम लड़ते हैं क्योंकि हमें लड़ना ही सिखाया गया है हम लड़ते हैं कि लड़ना हमारा रोजगार है
उसने हल्की हँसी मुसकुराते मेरी बात को पूरा किया-- दुनिया का हर सैनिक इसी लिए लड़ता है मेरे भाई
वह चाय के लिए शुक्रिया कहते हुए उठा और दरवाजे का रुख किया उसे अपनी बंदूक का खयाल न रहा या शायद वह जानबूझकर वहाँ छोड़ गया बच्चों के खिलौनों के लिए बंदूकों के भविष्य के लिए उसने आखिरी बार मुड़कर देखा तब मैंने कहा-- मैं तुम्हें कल युद्ध में मार दूंगा वह मुसकुराया और जवाब दिया-- यही तो हमें सिखाया गया है ।
--विहाग वैभव
[ इस कविता को 'भारत भूषण पुरस्कार' 2018 दिया गया है। ]
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