मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
कला की कसौटी (काव्य)  Click to print this content  
Author:शिवसिंह सरोज

Krantikari Kalam

आज न जिसने कलम गड़ाई पशुवत् अत्याचारों में।
उस कायर कवि की गिनती है, नवयुग के हत्यारों में।।

जिसके मन के भाव, घाव मानवता के भर नहीं सके।
जिस भावुक के अश्रु आज परवशता में झर नहीं सके।।
आज दनुजता के दंशन से, जिसे न कुछ पीड़ा पहुँची,
उस पशु को हम गिनें भला क्या साहित्यिक कृतिकारों में!

आग लगी दुनिया में, जिसने की लपटों की अवहेला।
उसे न सुख मिल कभी सकेगा, आज न जिसने दुख झेला।।
विपति विषमता की बेड़ी में, पग सोये जो, टूट चुके--
जो पतझड़ में टिका न तरु, वह फूला नही बहारों में ।।

लेकर अपनी 'कला' कमल सा, जो कीचड़ में फूल बना।
मानवता के महायज्ञ में जो जन जलती तूल बना,
जीवित रहकर इस जगती के चुभते काँटे चुन डाले--
और धन्य है वही, मरा जो जनता की जयकारों में ।

आज वही कवि, जिसने पैदा कर दी बलि की बेचैनी
आज वही रवि चीयर गई तम को जिसकी किरनें पैनी।
कलाकार है वही जला जो जलती जगती के कारण--
'रोम्यां रोलां' सा शहीद बन फ्रांसिस्ती फुफकारों में।

आज न जिसने कलम गड़ाई पशुवत अत्याचारों में।
उस कायर कवि की गिनती है, नवयुग के हत्यारों में।।

-शिवसिंह सरोज [1942]

Previous Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश