मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
तुम बेटी हो (काव्य)  Click to print this content  
Author:राधा सक्सेना

तुम मेरी बेटी जैसी हो, ये कहना बहुत आसान है
इन शब्दों का लेकिन अब यहां, कौन रखता मान है!
इसी एक झूठे भ्रम में खुश हो लेती है वो नादान है
कहने में क्या, कहते तो सभी बेटी को वरदान है।
कहने और करने में, फर्क बहुत बड़ा होता है
बेटियों को भार न समझना मुश्किल जरा होता है।
इस दुनिया में लोगों का, दिल कहां बड़ा होता है!
भेड़िया इंसान के रूप में हर मोड़ पर खड़ा होता है।
नन्ही सी जान के दुश्मन को कौन कहेगा इंसान है!
गर्भ से लेकर जवानी तक उस पर लटक रही तलवार है
प्यार बांटने वाली बेटी को क्यों नहीं मिलता प्यार है!
उसकी हर एक बात पर उठते हर रोज यहां सवाल है
न जाने कब जागेगी दुनिया सुनके उसकी चीख पुकार है।
उसकी इस व्यथा वेदना का कब होगा स्थाई समाधान है!
जो कोख में नहीं मरती वो हर रोज यहां मरती है
अपने अरमानों के संग हरपल थोड़ा-थोड़ा बिखरती है।
सुरक्षा की कसम खाके भी हम रक्षा नहीं कर पाते हैं
उसके हक के लिए बस खोखले नारे ही लगाते हैं
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का चलता हर रोज अभियान है।

- राधा सक्सेना, इंदौर, भारत
  ई-मेल: suskha22sep@gmail.com

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