मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
वो मजदूर कहलाता है (काव्य)  Click to print this content  
Author:राधा सक्सेना

जो हमारे लिए घर बनाता है
घर नहीं हमारे उस सपने को साकार करता है
जिसे हम खुली आंखों से देखते हैं
खुद झोपड़ी में बेफिक्र होकर सोता है,
और कोई सपना नहीं देखता।

जो हमारे लिए कपड़े बनाता है
कपड़े नहीं बल्कि हमारा सम्मान बनाता है
जिसमें हम खुद को ढकते हैं
खुद गंदे पुराने कपड़े पहनता है
और शर्मिंदगी महसूस नहीं करता।

जो हमारे लिए अनाज उगाता है
अनाज नहीं बल्कि वो अमृत उगाता है
जिसके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते
खुद रूखी सूखी खाकर गुजारा करता है
फिर भी तृप्ति महसूस करता है।

जो हमारे लिए खिलौने बनाता है
खिलौने नहीं बल्कि वो खजाना बनाता है
जिसमें हम अपने बच्चों की खुशी देखते हैं
उसके खुद का बच्चा खेलने की उम्र में,
बाजारों में खिलौने बेचता है।

जो हमारी हर जरूरत को परखता है
उसकी व्यवस्था की आधारशिला रखता है
जो दिन रात मेहनत करता है
और हमारे लिए सुख का सामान बनाता है
जिसमें उसका पसीना शामिल होता है
कभी थकान नहीं महसूस करता है।
वो मजदूर कहलाता है।।

- राधा सक्सेना, इंदौर, भारत
  ई-मेल: suskha22sep@gmail.com

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