है उषा की पुणय-वेला वीर-जीवन एक मेला चल पड़ी है वीर युवकों, की नवल यह आज टोली? आज कैसी वीर, होली?
मातृ-बन्धन काटने को ध्येय पावन छाँटने को बाँटने को शत्रु-संगर में, अनोखी लाल रोली ! आज कैसी वीर होली?
जा रहे हैं क्यों सुभट ये और भोले निष्कपट से आज करने प्रियतमा से, जेल में निज प्रेम-होली! आज कैसी वीर होली?
- क्षेमचन्द्र 'सुमन', १६ मई' ४३
[ साभार: बन्दी के गान ] |