भाषा हो या हो राजनीति अब और गुलामी सहय नहीं, बलिदानों का अपमान सहन करना कोई औदार्य नहीं । रवि-रश्मि अपहरण करने को मत बढें किसी के क्रूर हाथ इन मुसकाते जल-जातों को यह सूर्य ग्रहण स्वीकार्य नहीं ।
हिन्दी औरों की बोली है तो अंग्रेजी कब अपनी है? अपनी इतनी भाषाओं से भी अंग्रेजी क्या वजनी है? उत्तर-दक्षिण के भेद भाव मत बनै ऐक्य-पथ में बाधक, रामेश्वर, सोमनाथ, अपने, हिन्दी ऐसे ही अपनी है ।
अपनी स्वतंत्र भारत भू में हम भाषा में परतंत्र रहें । हिन्दी, तमिल, बंगला आदि के रहते भी न स्वतंत्र रहें ! तो किस मुंह से फिर बात करें एकता और आजादी की, अंग्रेज गए अब अंग्रेजी के कब तक बने गुलाम रहें ।
इसलिए कर्णधारों, हम को अब और न पीछे को खींचो, अपनी केसर की क्यारी को अब और न पावक से सींचो । बढ़ना है हमें प्रगति-पथ पर भारत को भारत बनने दो, जीवन-यथार्थ परिवेश देख अब और नहीं आँखें मीचो ।
हिन्दी भारत की भाषा है अपने कंठों की निज भाषा, हिन्दी भाषा ही नहीं, कोटि जन-गण मन की है परिभाषा । अंग्रेजी से कह दो छोड़े गद्दी, समझे युग की है परिभाषा । सम्मानित हो निष्कपट भाव से, हिन्दी सब की है अभिलाषा ।
- श्रीमती रेवती |