क्या संसार में कहीं का भी आप एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो। - डॉ. श्यामसुंदर दास।
 
बड़ी तुम्हारी भूल (काव्य)     
Author:श्रीधर पाठक

मित्र यह बड़ी तुम्हारी भूल
जो है सुख का मूल उसे तुम समझ रहे हो शूल

कोमल कल्प वृक्ष को मानो कंटक-वृक्ष बबूल
प्रेम-फूल के रस-पराग को गिनो द्वेष- विष-धूल
मित्र यह बड़ी तुम्हारी भूल

जो है अति प्रतिकूल उसी को जानो हो अनुकूल
जरा कष्ट से दब जाते हो, जरा हर्ष से फूल
मित्र यह बड़ी तुम्हारी भूल

-श्रीधर पाठक

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश