धन्यवाद ! गलियो, चौराहो। हम अपने घर लौट चले हैं
कटते अंग रंग गंधों से गड़े हुए धरती में आधे खंभों की गिनतियाँ घटाते टूटी नसें थकन से बाँधे धन्यवाद ! उल्लास उछाहो हम अपने घर लौट चले हैं
घूँट लिए दिन चायघरों ने कुचली पहियों ने संध्याएँ परिचय में बस फली नमस्ते जेब भर गईं असफलताएँ धन्यवाद ! मिलनातुर राहो हम अपने घर लौट चले हैं
समारोह मेले वरयात्रा भीड भोज स्वागत शहनाई सभी जगह पीछे चलती है अर्थहीन काली परछाईं धन्यवाद ! उत्सवो, विवाहो हम अपने घर लौट चले हैं
धन्यवाद ! गलियो, चौराहो
-भारत भूषण [मेरे चुनिंदा गीत : भारत भूषण]
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