सच ही तो है, मोबाइल ने गुमाया बचपन। क्या खूब थी, वो सुबह सूर्य की लालिमा और दूर तलक बच्चों की सभा। क्या खूब थी पेड़ो की छाँव, जब पर्चियों के खेल थे गली में बच्चों के भी मेल थे। क्या खूब थी वो शाम, पिठू, बैटबॉल, बैडमिंटन के नाम। सब लुप्त कर दिया इस मोबाइल ने, ले लिया बचपन अपने 'स्टाइल' में।
--डॉ दीपिका ई-मेल: deep2581@yahoo.com
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