ज़रूरी नहीं, पुस्तक थामे मंच पर इतराने वाला, हो एक श्रेष्ठ कवि।
ज़रूरी नहीं, सिर्फ तालियों की गड़गड़ाहट हो मानक, एक श्रेष्ठ कविता का।
ज़रूरी है, "आदर्श प्रेम" लिखने से पहले, कवि का प्रेम में डूब जाना।
ज़रूरी है, लिखते वक्त - "पुष्प की अभिलाषा", कवि का स्वयं पुष्प हो जाना।
ज़रूरी है, कविता का दर्पण होना, जो दिखाता रहे समाज को उसकी सूरत।
ज़रूरी है, कविता में भाषा-व्यवहार, शब्द-अनुशासन, और कविता का कविता होना।
और हाँ, कविता के पठन या श्रवण उपरांत, तैरती ख़ामोशी भी हो सकती है मानक, एक श्रेष्ठ कविता का।
-मौसम कुमरावत ई-मेल: mausamkumravat@gmail.com |