जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 
शहीदों के प्रति  (काव्य)     
Author:भोलानाथ दर्दी

भइया नहीं है लाशां यह बे कफ़न तुम्हारा
है पूजने के लायक पावन बदन तुम्हारा

दिन तेईसको यह होगा त्योहार एक कौमी
बैकुण्ठ को हुआ है इस दम गमन तुम्हारा

जाया लहू तुम्हारा जानेका यह नहीं है
फूले फलेगा इससे देशी चमन तुम्हारा

सब भक्तियोंसे बढ़कर उत्तम है देशभक्ती
छुटा है बाद मुद्दत आवा गमन तुम्हारा

इतिहासमें रहेंगी कुरबानिया तुम्हारी
तुमपर फखर करेगा प्यारा वतन तुम्हारा

--भोलानाथ दर्दी

 

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