बारहवीं के बच्चे
लो फिर आ गया है मार्च का महीना अपने आप से ही बड़बड़ाते, कुछ कहते या फिर गुमसम रहते बच्चे और माँ-बाप बड़ी आसानी से कहीं भी देखे जा सकते हैं, पिछले दो-चार सालों से ये बच्चे मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग लेते दिल्ली यूनिवर्सिटी के रंगीन सपनों की मनोहारी उड़ान भरते अपनी और अपने माँ-बाप की इच्छा पूरी करते सारी दुनिया भूलकर जुटे हैं जी-जान से, क्योंकि अब समय आ गया है उस अंधी दौड़ में, वाक़ई अंधे बनकर दौड़ लगाने का।
काश! ये समझ पाते डॉक्टर- इंजीनियर की डिग्री, और दिल्ली यूनिवर्सिटी की 100% की कट-ऑफ़ से आगे भी है दुनिया, जिसमें हर तरह के पंछी उड़ान भरते हैं ख़ूब खुलकर अपने जीवन को जीते हैं और, आगे बढ़ते हैं।
बच्चों! तुम भी इक नई उड़ान भरो इस अंधी दौड़ को भूलकर नवजीवन का आग़ाज़ करो।
- कोमल मैंदीरत्ता ई-मेल: komalmendiratta@hotmail.com
इस साल भी
हर साल की तरह यही सोचा था इस साल भी बड़े दिल से मनाऊँगा होली मैं इस बार भी।
हर दोस्त, हर दुश्मन को अपने गले से लगाऊँगा लेकिन हर साल की तरह इस साल भी मेरी सारी-की-सारी सोच धरी रह गई मन से मेरे कोई मैल दूर न गई।
मैंने सोचा कि आख़िर मैं भी तो हूँ इक इंसान ही जिसके साथ-साथ चलता है हर छोटी-छोटी बात को दिल से लगाकर रखने का बोझ भी। अगर मैं बदल जाता तो खुदा न हो जाता !
लेकिन, फिर भी हर साल सोचता हूँ मैं यही बड़े दिल से मनाऊँगा होली मैं इस साल भी।
- कोमल मैंदीरत्ता ई-मेल: komalmendiratta@hotmail.com
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