सूरज कहता नहीं किसी से, मैं प्रकाश फैलाता हूँ। बादल कहता नहीं किसी से, मैं पानी बरसाता हूँ ।। आँधी कहती नहीं किसी से, मैं आफत ढा देती हूँ। कोयल कहती नहीं किसी से, मैं अच्छा गा लेती हूँ।। बातों से न, किन्तु कामों से, होती है सबकी पहचान। घूरे पर भी नाच दिखा कर, मोर झटक लेता है मान।।
- श्रीनाथ सिंह [बाल-भारती, हिंदी साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग]
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