वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। - मैथिलीशरण गुप्त।
 

कई बोलियाँ बोलने वाला

 (बाल-साहित्य ) 
 
रचनाकार:

 अकबर बीरबल के किस्से

अकबर और बीरबल का विनोद चलता रहता था। एकक बार वे बगीचे में बैठे थे। अचानक अकबर ने बीरबल से पूछा कि क्या तुम किसी ऐसे इनसान को खोज सकते हो जो कई अलग-अलग बोलियाँ बोलता हो?

बीरबल ने कहा, मै एक आदमी जानता हूँ जो तोते की बोली बोलता है, शेर की बोली बोलता है, और गधे की बोली भी बोलता है। बादशाह अकबर इस बात को सुन कर हैरान हो गए। उन्होने बीरबल को अगले दिन उस आदमी को दरबार में पेश करने का हुक्म दिया।

बीरबल अगले दिन सुबह उस व्यक्ति को दरबार में ले आए। बीरबल ने उसे एक छोटी बोतल शराब पिला दी। अब नशे की हालत में शराबी अकबर बादशाह के आगे खड़ा था। वह जानता था कि शराब पीकर आने के कारण बादशाह उसे सज़ा दे सकता है। इसलिए वह भय से गिड़गिड़ाने लगा। वह बादशाह की खुशामद करने लगा। तभी बीरबल अकबर से धीरे से बोले, "हुज़ूर, यह जो सज़ा के डर से बोल रहा है, वह तोते की भाषा है।"

बीरबल ने उस आदमी को थोड़ी और शराब पिला दी। उसे और अधिकी नशा हो गया। अब तो नशे की हालत में वह अकबर बादशाह के सामने सीना तान कर खड़ा हो गया। बोला, "आप बादशाह हैं तो क्या हुआ! मैं भी अपने घर का बादशाह हूँ। मै किसी से नहीं डरता।"

बीरबल ने पुनः अकबर से कहा, "हुज़ूर, अब शराब के नशे में निडर होकर यह जो बोल रहा है, यह शेर की बोली है।"

बीरबल ने उस आदमी को और अधिक शराब पिला दी। अब तो वह पूरी तरह नशे में धुत्त था। इस बार वह आदमी लड़खड़ाते कदमों से गिरते-पड़ते हुए चलने की कोशिश में ज़मीन पर गिर गया और हवा में हाथ-पाँव मारते हुए, उल-जलूल चिल्लाने लगा। अब बीरबल बोले, "हुज़ूर! अब यह जो बोल रहा है, यह गधे की बोली है।

अकबर एक बार फिर बीरबल की हाज़िर जवाबी से प्रसन्न हो गए।

[अकबर-बीरबल]

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