देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

अद्भुत अकल्पनीय अविश्वसनीय

 (विविध) 
 
रचनाकार:

 प्रो. राजेश कुमार

यह 2013 का साल था और मैं गुजरात में निदेशक के पद पर गया था। अपने जिस पूर्ववर्ती से मुझे कार्यभार लेना था, उसने अन्य बातों के अलावा मेरे साथ मामाजी नामक शख्सियत का जिक्र किया और बताया कि उन्होंने मुझे बता दिया था कि मेरा स्थानांतरण 16 फ़रवरी को हो जाएगा। वे बहुत दिनों से अपने स्थानांतरण की कोशिश में थे, जो हो नहीं रहा था। उन्होंने आगे यह भी बताया कि मामाजी वैसे तो नेत्रहीन है, लेकिन उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त है और वे भविष्य को देख लेते हैं। उनका स्थानांतरण 16 फ़रवरी को ही हुआ था।

ऐसा नहीं है कि मैं इन चीज़ों पर अविश्वास करता हूँ, लेकिन मैं इन चीज़ों से बचता जरूर हूँ, क्योंकि ये चीज़ें हमें उलझन में डाल देती हैं, जीने का सस्पेंस ख़त्म कर देती हैं।

खैर, बात आई गई हो गई।

फिर कुछ दिन बाद मामाजी का जिक्र आया। हमारे एक केंद्र के प्रिंसिपल त्रिवेदी जी ने बहुत इसरार करके मुझे कहा कि मैं मामाजी से मिलूँ और अपने भविष्य के बारे में कुछ पूछूँ। अपने भविष्य के बारे में कुछ जानने में मेरी ज़्यादा रुचि नहीं थी, क्योंकि जब भी मैं भविष्य के बारे में सोचता हूँ, तो मुझे वह कहानी याद आ जाती है, जिसके अनुसार जब एक पत्नी अपने पति को ज्योतिषी के पास लेकर गई और जब उस ज्योतिषी ने पत्नी से पूछा कि क्या आप उनका भविष्य जानना चाहती हैं? तो उसने कहा कि नहीं मैं तो उनका भूत जानना चाहती हूँ, क्योंकि इनका भविष्य तो मेरे हाथ में है।

त्रिवेदी जी ने मुझे मामाजी के चामत्कारिक व्यक्तित्व के बारे में और बहुत सारी बातें बताईं। उन्होंने बताया कि कैसे उनकी पहचान की एक स्त्री का दिमाग़ का ट्यूमर मामाजी से बात करने के बाद और उनकी सलाह के अनुसार मंत्रों का उच्चारण के बाद गायब हो गया, हालाँकि कुछ ही दिनों में उस महिला का ऑपरेशन करने वाली थी। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे दिल्ली में पोस्टेड एक व्यक्ति का मामाजी के सुझावों पर अमल करने के बाद गुजरात में ट्रांस्फ़र हो गया, यद्यपि गुजरात में उस कंपनी का कोई नामोनिशान नहीं था।

मामा जी बीच मैं बैठे हुए, लेखक प्रो. राजेश जी (बाएँ शर्ट और जींस पहने हुए) 

त्रिवेदी जी ने मुझे यह भी बताया कि उन्होंने मानसरोवर की यात्रा की है, और जब वे मानसरोवर की यात्रा पर जाने वाले थे, तो वे इस बात को लेकर बहुत व्यग्र थे कि उनकी यात्रा पूरी हो पाएगी कि नहीं और वे सही सलामत वापस लौट पाएँगे कि नहीं, क्योंकि यात्रा बहुत कठिन बताई जा रही है। उन्होंने इस बारे में मामाजी से सलाह ली, तो मामाजी ने बताया कि चिंता मत करो, तुम्हारी यात्रा सफल होगी। जब तुम चलोगे, तो पहले दिन तुम्हें रास्ते में ठोकर लगेगी। ठोकर लगने का मतलब होगा कि तुम सही रास्ते पर हो। अगले दिन तुम्हें रास्ते में एक मरा हुआ साँप दिखाई देगा। वह भी इस बात का संकेत होगा कि तुम्हारी यात्रा ठीक रहेगी। इसके बाद जहाँ तुम ठहरने वाले होगे, वहाँ एक सन्न्यासी सभी लोगों को छोड़ता हुआ बस तुम्हारे पास आकर बैठेगा। वह जो माँगे, उसे उससे ज़्यादा ही दे देना और आदरपूर्वक विदा करना। उन्होंने बताया कि जब वे मानसरोवर की बात की यात्रा पर गए, तो इसी क्रम में ये सभी बातें घटित होती गईं, और वे मामाजी के निर्देशों का पालन करते चले गए। जब भी लोग एक जगह ठहरे, तो एक सन्न्यासी उनके पास आकर बैठ गया। त्रिवेदी जी ने सन्न्यासी से पूछा है कि वे उनकी क्या सेवा कर सकते हैं? सन्न्यासी ने कहा कि उन्हें कुछ पैसे की ज़रूरत है। त्रिवेदी जी ने पूछा कि कितने पैसे? सन्न्यासी ने कहा कि जितने मर्जी दे दो। त्रिवेदी जी ने उन्हें काफ़ी पैसे दे दिए, और वह सन्न्यासी वहाँ से चला गया। तभी उनके साथी त्रिवेदी जी के पास आए और उनसे पूछा कि तुम किससे बात कर रहे थे? त्रिवेदी जी ने उन्हें पूरा किस्सा बताया। इस पर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ और बोले कि उन्होंने कोई आदमी दिखाई नहीं दिया। कुल मिलाकर त्रिवेदी जी अपनी यात्रा सफलतापूर्वक करके सुख-शांति से वापस आ गए।

मैंने उनकी बातों पर बहुत ज़्यादा गौर नहीं किया, क्योंकि एक तो ऐसी बातें अकसर सुनाई देती रहती हैं, दूसरे मुझे इनमें कोई रुचि नहीं थी, और तीसरी और ज़्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकारी सर्विस रूल्स में दिया गया है कि निदेशक को इन चीज़ों से दूर रहना चाहिए।

हमारे कार्यालय के कुछ कर्मचारी भी मामाजी से मिलने में रुचि रखे हुए थे। जिज्ञासावश मैंने सोचा कि चलो जाकर देखा जाए।

हम सब लोग मामाजी के पास पहुँचे। मामाजी दुबले पतले इंसान हैं, उनकी उम्र कम है, पर क्योंकि वे त्रिवेदी जी के रिश्ते में मामाजी लगते थे, इसलिए सब लोग उन्हें मामाजी ही कहने लगे थे, यानी मुहावरे के अनुसार वे जगत मामा हो गए थे। खैर, हम लोग उनके घर पहुँचे। उनसे आत्मीय वार्तालाप हुआ। सभी लोगों ने उनसे अपनी-अपनी समस्याओं के बारे में पूछा, क्योंकि हम सभी की कुछ-न-कुछ समस्या रहती ही है। किसी ने उनसे अपने दादी की बीमारी के बारे में पूछा, किसी ने पूछा कि क्या उनकी नौकरी स्थायी हो जाएगी, किसी ने उनसे अपनी शादी के बारे में पूछा, वगैरह-वगैरह।

इसके बाद मामाजी ने मुझसे कहा कि भाई आप भी कुछ पूछें, तो मैंने कहा कि मामाजी मैं तो आपके दर्शन के लिए आया हूँ। मुझे कुछ पूछना नहीं है।
इस पर मामाजी ने कहा कि ठीक है, अगर आप पूछना नहीं चाहती तो मैं आपको कुछ बताता हूँ।

इसके बाद उन्होंने मेरे पद और गरिमा का लिहाज करते हुए सब लोगों को वहाँ से जाने के लिए कह दिया और जब कमरा खाली हो गया, तो उन्होंने कुछ ध्यान जैसा लगाया। अपनी आँखें लगभग उल्टी कर ली। लंबी उबासी ली, जो मेरे विचार से उनकी ऊर्जा की हानि का सबब था, जो वे अपने ध्यान लगाने में ख़र्च कर रहे थे। मामाजी माँ दुर्गा के उपासक थे और पूरी विधि और अनुष्ठानपूर्वक उनकी आराधना किया करते थे। नवरात्रों में उनका पूजा-ध्यान इतना बढ़ जाता था कि कोई उनसे बात तक नहीं कर सकता था।

मामाजी ने मुझसे पूछा कि आपका घर क्या उत्तर भारत में है। बात सही थी, तो मैंने हाँ कह दिया। यह मामूली बात की और किसी को भी पता हो सकती थी, इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।

इसके बाद उन्होंने पूछा कि क्या आपके काका के लड़के ने आत्महत्या की है?

उनकी यह बात सुनकर मैं पूरी तरह से दंग रह गया। गुजरात में मैं बिल्कुल नया था, और मेरे बारे में किसी को भी बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं थी, और इतनी जानकारी तो बिल्कुल नहीं थी कि कोई इस घटना के बारे में जानता हो, क्योंकि यह हमारी परिवार तक ही सीमित थी और कोई ऐसी बात भी नहीं की कि हम हर किसी के सामने इसे बताते फिरें। बात बिल्कुल सही थी। हमारे चाचा जी के लड़के ने किन्हीं विषम परिस्थितियों में आत्महत्या कर ली थी।

मैंने उन्हें उनके ज्ञान के लिए धन्यवाद दिया, उनकी प्रशंसा की और मेरा इस बात में विश्वास और दृढ़ हो गया कि जीवन में ऐसा जरूर है, जो अद्भुत है अकल्पनीय है, अविश्वसनीय हो, और जो हमारी जान और कल्पना की सीमाओं के परे होता है।

प्रो. राजेश कुमार
संपादक, विश्व हिंदी कोश, केंद्रीय हिंदी संस्थान
शिक्षा विभाग, भारत सरकार
सी-205, सुपरटेक इको सिटी
सेक्टर 137, नोएडा, उत्तर प्रदेश 201305
ईमेल - drajeshk@yahoo.com
मोबाइल - 9687639855

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