वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। - मैथिलीशरण गुप्त।
 

नदी क्यों रोती है?

 (बाल-साहित्य ) 
 
रचनाकार:

 अकबर बीरबल के किस्से

वर्षा ऋतु का समय था। यमुना नदी अपने उफान पर थी। बादशाह अकबर बीरबल के साथ बुर्जी पर चढ़ यमुना की सुंदरता निहार रहे थे। 
 
चारों ओर सन्नाटा था। ज़ोर से बहती यमुना नदी की धारा से उभरती ध्वनि को सुनकर बादशाह को कुछ ऐसा आभास हुआ जैसे यह नदी के रोने का स्वर हो। वे बीरबल से बोले--“क्या तुम्हें भी लगता है कि नदी रो रही है?" 

बीरबल भला कैसे मना करते, बोले “जी बन्दापरवर...!” 

"फिर बताओ, नदी क्यों रोती है ?" बादशाह ने सवाल किया। 

बीरबल ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए, नम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “नदी अपने पिता के घर यानी पहाड़ से विदा होकर अपने पति यानी समुद्र से मिलने जा रही है, इसी कारण वह रोती जा रही है।"

बादशाह बीरबल का उत्तर सुनकर प्रसन्न हो गए। 

[ अकबर-बीरबल के किस्से ]

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