हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

किसका नौकर कौन?

 (बाल-साहित्य ) 
 
रचनाकार:

 अकबर बीरबल के किस्से

बादशाह अकबर और उनके बीरबल जब कभी भी अकेले होते तो किसी न किसी बात पर चर्चा करते ही रहते। एक दिन बादशाह अकबर बैंगन की खूब तारीफ़ करने लगे। 

बीरबल भी बादशाह की हाँ में हाँ मिलाते गए।  वह खुद भी अपनी तरफ से भी बैंगन की तारीफ़ में कुछ न कुछ जोड़ देते।  

अचानक बादशाह अकबर के दिल में बीरबल की परीक्षा की सूझी। बादशाह बैंगन की बुराई करने लगे। चतुर बीरबल बादशाह की मंशा समझ गए। बीरबल फिर उनकी हाँ में हाँ मिलाने लगे।  बैंगन खाने से होने वाली हानियाँ गिनाने लगे, इससे कितनी शारीरिक बीमारियाँ हो जाती हैं, इत्यादि।

बीरबल की बात सुनकर बादशाह हैरान हो गए और बोले- “बीरबल! तुम्हारी इस बात का यकीन नहीं किया जा सकता। कभी तुम बैंगन की तारीफ करते हो और कभी बुराई। जब हमने इसकी तारीफ़ की तो तुमने भी इसकी तारीफ़ की और जब हमने इसकी बुराई की तो तुमने भी इसकी बुराई की। आखिर माजरा क्या है?"

बीरबल ठहरे हाजिरजवाब, झट से अपने लहजे में उत्तर दिया- “बादशाह सलामत! मैं आपका नौकर हूँ,  बैंगन का नहीं!”

[भारत-दर्शन संकलन]

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