पढ़े-लिखों से रखता नाता, मैं मूर्खों के पास न जाता,
दुनिया के सब संकट खोता ! अगर कहीं मैं पैसा होता ?
जो करते दिन रात परिश्रम, उनके पास नहीं होता कम,
बहता रहती सुख का सोता ! अगर कहीं मैं पैसा होता ?
रहता दुष्ट जनों से न्यारा, मैं बनता सुजनों का प्यारा,
सारा पाप जगत से धोता ! अगर कहीं मैं पैसा होता है।
व्यर्थ विदेश नहीं मैं जाता, नित स्वदेश ही में मँडराता,
भारत आज न ऐसे रोता ! अगर कहीं मैं पैसा होता ?
- सोहनलाल द्विवेदी |