बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान । अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान ।।
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार । दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार ।।
घर को खोजें रात दिन घर से निकले पाँव । वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव ।।
नक़्शा ले कर हाथ में बच्चा है हैरान । कैसे दीमक खा गई उस का हिन्दोस्तान ।।
सीधा-साधा डाकिया जादू करे महान । एक ही थैले में भरे आँसू और मुस्कान ।।
वो सूफ़ी का क़ौल हो या पंडित का ज्ञान । जितनी बीते आप पर उतना ही सच मान ।।
मैं भी तू भी यात्री चलती रुकती रेल । अपने अपने गाँव तक सब का सब से मेल ।।
पंछी, मानव, फूल, जल, अलग-अलग आकार । माटी का घर एक ही, सारे रिश्तेदार ।।
अन्दर मूरत पर चढ़े घी, पूरी, मिष्टान । मंदिर के बाहर खड़ा, ईश्वर माँगे दान ।।
- निदा फ़ाज़ली |