हिंदी भाषा अपनी अनेक धाराओं के साथ प्रशस्त क्षेत्र में प्रखर गति से प्रकाशित हो रही है। - छविनाथ पांडेय।
 
एक अदद घर  (काव्य)       
Author:जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas

जब
माँ
नींव की तरह बिछ जाती है
पिता
तने रहते हैं हरदम छत बनकर
भाई सभी
उठा लेते हैं स्तम्भों की मानिंद
बहन
हवा और अंजोर बटोर लेती है जैसे झरोखा
बहुएँ
मौसमी आघात से बचाने तब्दील हो जाती हैं दीवाल में
तब
नई पीढ़ी के बच्चे
खिलखिला उठते हैं आँगन-सा
आँगन में खिले किसी बारहमासी फूल-सा
तभी गमक-गमक उठता है
एक अदद घर
समूचे पड़ोस में
सारी गलियों में
सारे गाँव में
पूरी पृथ्वी में

- जयप्रकाश मानस
[साभार - अबोले के विरुद्ध]

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश