खड़ा हिमालय बता रहा है डरो न आंधी पानी में। खड़े रहो तुम अविचल हो कर सब संकट तूफानी में।
डिगो ना अपने प्राण से, तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे, तुम भी ऊँचे उठ सकते हो, छू सकते हो नभ के तारे।
अचल रहा जो अपने पथ पर लाख मुसीबत आने में, मिली सफलता जग में उसको, जीने में मर जाने में।
- सोहनलाल द्विवेदी
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