भाषा राष्ट्रीय शरीर की आत्मा है। - स्वामी भवानीदयाल संन्यासी।
 
बग़ैर बात कोई | ग़ज़ल (काव्य)       
Author:राजगोपाल सिंह

बग़ैर बात कोई किसका दुख बँटाता है
वो जानता है मुझे इसलिए रुलाता है

है उसकी उम्र बहुत कम इसलिए शायद
वो लम्हे-लम्हे को जीता है गुनगुनाता है

मेरी तन्हाई मुझे हौंसला सा देती है
तन्हा चिराग़ हज़ारों दीये जलाता है

वो दूर हो के भी सबसे क़रीब है मेरे
मैं क्या बताऊँ कि क्या उससे मेरा नाता है

वो नम्र मिट्टी से बारिश में आज भी अक्सर
बना-बना के घरौंदों को ख़ुद मिटाता है

- राजगोपाल सिंह

 

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