जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 
मेरी बॉल (बाल-साहित्य )       
Author:दिविक रमेश

अरे क्या सचमुच गुम हो गई
मेरी प्यारी-प्यारी बॉल?
कहां न जाने रखकर मैं तो
भूल गई हूं अपनी बॉल!

यहां भी देखा वहां भी देखा
मिली नहीं पर मेरी बॉल!
उछल उछल कर मुझे हंसाती
कितनी अच्छी थी न बॉल!

पकड़ के लाता दौड़ के पप्पी
दूर फेंकती थी जब बॉल।
कहां न जाने रखकर मैं तो
भूल गई हूं अपनी बॉल।

मां बोली तू बड़ी भुलक्कड़
आ ले खाले ये बादाम।
खाकर अपने इस दिमाग को
देना फिर थोड़ा आराम।

तभी याद आई मुझको तो
दीदी ने तो ली थी बॉल!
झट बोली जाकर दीदी से
दे दो दीदी मेरी बॉल!

-दिविक रमेश

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश