विडम्बना कितनी रोशनी है फिर भी कितना अँधेरा है कितनी नदियाँ हैं फिर भी कितनी प्यास है कितनी अदालतें हैं फिर भी कितना अन्याय है कितने ईश्वर हैं फिर भी कितना अधर्म है कितनी आज़ादी है फिर भी कितने खूँटों से बँधे हैं हम
विनम्र अनुरोध जो फूल तोड़ने जा रहे हैं उनसे मेरा विनम्र अनुरोध है कि थोड़ी देर के लिए स्थगित कर दें आप अपना यह कार्यक्रम और पहले उस कली से मिल लें खिलने से ठीक पहले ख़ुशबू के दर्द से छटपटा रही है जो यह मन के लिए अच्छा है अच्छा है आदत बदलने के लिए कि कुछ भी तोड़ने से पहले हम उसके बनने की पीड़ा को क़रीब से जान लें
कलयुग
एक बार एक काँटे के शरीर में चुभ गया एक नुकीला आदमी काँटा दर्द से कराह उठा बड़ी मुश्किल से उसने आदमी को अपने शरीर से बाहर निकाल फेंका तब जा कर काँटे ने राहत की साँस ली
अंतर महँगे विदेशी टाइल्स और सफ़ेद संगमरमर से बना आलीशान मकान ही तुम्हारे लिए घर है जबकि मैं हवा-सा यायावर हूँ तुम्हारे लिए नर्म-मुलायम गद्दों पर सो जाना ही घर आना है जबकि मेरे लिए नए क्षितिज की तलाश में खो जाना ही घर आना है
नियति मेरे भीतर एक अंश रावण है एक अंश राम एक अंश दुर्योधन है एक अंश युधिष्ठिर जी रहा हूँ मैं निरंतर अपने ही भीतर अपने हिस्से की रामायण अपने हिस्से का महाभारत
- सुशांत सुप्रिय मार्फ़त श्री एच.बी. सिन्हा 5174 , श्यामलाल बिल्डिंग , बसंत रोड,( निकट पहाड़गंज ) , नई दिल्ली - 110055 मो: 9868511282 / 8512070086 ई-मेल : sushant1968@gmail.com |