क्या संसार में कहीं का भी आप एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो। - डॉ. श्यामसुंदर दास।
 
राम, तुम्हारा नाम (काव्य)       
Author:रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

राम, तुम्हारा नाम कण्ठ में रहे, 
हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे, 
दुःख से त्राण नहीं माँगूँ।

माँगें केवल शक्ति दुःख सहने की, 
दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया 
अकातर ध्यानमग्न रहने की।

देख तुम्हारे मृत्यु-दूत को डरूँ नहीं, 
न्योछावर होने में दुविधा करूँ नहीं।

तुम चाहो, दूँ वही, 
कृपण हो प्राण नहीं माँगें।

- रामधारीसिंह दिनकर

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