अहिंदी भाषा-भाषी प्रांतों के लोग भी सरलता से टूटी-फूटी हिंदी बोलकर अपना काम चला लेते हैं। - अनंतशयनम् आयंगार।
 
जूझना बुज़दिली से बेहतर है (काव्य)       
Author:विजय कुमार सिंघल

जूझना बुज़दिली से बेहतर है
सनसनी बेहिसी से बेहतर है

खामुशी गर सितम बढ़ाती हो
बोलना खामुशी से बेहतर है

चोट खाई क़लम को रोने दो
शायरी बे हिसी से बेहतर है

यह रुला कर सुकून देता है
तेरा ग़म हर हँसी से बेहतर है

ढाँपती है हमारे अश्कों को
तीरगी रोशनी से बेहतर है

- विजयकुमार सिंघल

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश