जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 
भारी नहीं, भाई है | लघुकथा  (कथा-कहानी)       
Author:सुदर्शन | Sudershan

मैंने कांगड़े की घाटी में एक लड़की को देखा, जो चार साल की थी, और दुबली-पतली थी। और एक लड़के को देखा, जो पांच साल का था, और मोटा ताज़ा था। यह लड़की उस लड़के को उठाए हुए थी, और चल रही थी।

लडकी के पांव धीरे धीरे उठते थे, और उसका रास्ता लम्बा था, और उसके माथे पर पसीने के मोती चमकते थे। वह हांप रही थी। 

मैंने लड़की से पूछा--"क्या यह लड़का भारी है?"

लड़की ने पहले हैरान होकर मेरी तरफ देखा, फिर मुस्कराकर लड़के की तरफ देखा, फिर जवाब दिया--"नहीं, यह भारी नहीं है। यह तो भाई है।"

-सुदर्शन

[जुलाई, 1947]

संपादक की टिप्पणी : इस लघुकथा का मूल शीर्षक 'बहन भाई' था। 

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश