जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 
तेरी मरज़ी में आए जो (काव्य)       
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है
कहीं पर दिन निकलता है, कहीं पर रात होती है
कहीं सूखा पड़ा भारी, कहीं बरसात होती है
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है

कभी खुशियों भरे थे दिन, कभी बस पीड़ होती है
तेरी मरज़ी से जीते हैं, तुझी से मात होती है
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है

मेरी यादों में जिंदा है, कभी ख्वाबों में आता है
मैं जितना भूलना चाहूं, वो उतना याद आता है
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है
कहीं पर दिन निकलता है, कहीं पर रात होती है

जिसे तुम प्यार करते हो, कहां खोकर भी खोता है
वो चाहे ना दिखाई दे, तुम्हारे पास होता है
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है

-रोहित कुमार 'हैप्पी'

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश