बातें उन बातों की हैं जिनमें अनगिन घातें थीं, बातें सब अपनों की थीं।
अपनों की थीं सो चुभती थीं, चुभती थीं सो दुखती थीं, दुखती थीं पर सहनी थीं, सहना ही तो मुश्किल था।
मुश्किल से पार उतरना था जीवन था और जीना था।
जीना था सो ठान लिया ना दुखना है, ना रोना है, ना टुकड़ा- टुकड़ा होना है, ना हार के ऐसी बातों से अपने आप को खोना है। सौ जतन किये सब झेल गए, आखिर बचा लिया खुद को। छोटी- मोटी पटकन- चटकन छोटी- मोटी टूटन- फूटन लेकिन बचा लिया खुद को।
जैसे, जितने, जो भी बचे हैं खुद को ही शाबासी दे कर तनहा बैठे सोच रहे हैं बिन अपनों के करेंगे क्या इस बचे हुए का?
-प्रीता व्यास न्यूज़ीलैंड
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