जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 
रोते-रोते रात सो गई  (काव्य)       
Author:अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee

झुकी न अलकें
झपी न पलकें
सुधियों की बारात खो गई

दर्द पुराना
मीत न जाना
बातों ही में प्रातः हो गई

घुमड़ी बदली
बूँद न निकली
बिछुड़न ऐसी व्यथा बो गई
रोते-रोते रात सो गई

-अटल बिहारी वाजपेयी

 

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