जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 
अविष्ट (काव्य)       
Author:धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti

दुख आया
घुट-घुट कर
मन-मन मैं खीज गया

सुख आया
लुट-लुट कर मैं छीज गया

क्या केवल पूंजी के बल
मैंने जीवन को ललकारा था

वह मैं नहीं था, शायद वह
कोई और था
उसने तो प्यार किया, रीत गया, टूट गया
पीछे मैं छूट गया

-धर्मवीर भारती
[सात गीत-वर्ष, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, 1964]

 

 

 

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