अहिंदी भाषा-भाषी प्रांतों के लोग भी सरलता से टूटी-फूटी हिंदी बोलकर अपना काम चला लेते हैं। - अनंतशयनम् आयंगार।
 
फिर नये मौसम की | ग़ज़ल  (काव्य)       
Author:भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया

फिर नये मौसम की हम बातें करें
साथ खुशियों, ग़म की हम बातें करें

जगमगाते थे दिए भी साथ में
फिर भला क्यूँ, तम की हम बातें करें

जो दिया, उसने, खुशी से लें उसे
फिर ना ज़्यादा, कम की हम बातें करें

जो खुशी में भी छलक जाएँ कभी
ऐसे चश्म-ए-नम की हम बातें करें

घाव देने का, ना हम,सोचें कभी
घाव पे,मरहम की हम बातें करें

गम के छाए,बादलों के बीच में
खुशनुमा,आलम की हम बातें करें

जो दुःखी हैं, उनकी भी सोचें जरा
बस ना, पेंच-ओ-ख़म की हम बातें करें

हो रही हो, बात गंगाजल की गर
साथ में, ज़म-ज़म की हम बातें करें

-डॉ० भावना कुँअर
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश