हिंदी भाषा अपनी अनेक धाराओं के साथ प्रशस्त क्षेत्र में प्रखर गति से प्रकाशित हो रही है। - छविनाथ पांडेय।
 
क्या मैं परदेसी हूँ ? (काव्य)       
Author:कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra

धवल सिन्ध-तट पर मैं बैठा अपना मानस बहलाता
फीजी में पैदा हो कर भी मैं परदेसी कहलाता

यह है गोरी नीति, मुझे सब भारतीय अब भी कहते
यद्यपि तन मन धन से मेरा फीजी से ही है नाता

भारत के जीवन से फीजी के जीवन में अन्तर है
भारत कितनी दूर वहाँ पर कौन सदा जाता आता

औपनिवेशिक नीति गरल है, नहीं हमें जीने देती
वे उससे ही खुश रहते हैं जो उनका यश है गाता

भारतीय वंशज पग-पग पर पाता है केवल कंटक
जंगल को मंगल करके भी दो क्षण चैन नहीं पाता

साहस है, हम सब सह लेंगे हम भयभीत नहीं होंगे
पता नहीं कब गति बदलेगा कालचक्र जग का त्राता ।

- पं॰ कमला प्रसाद मिश्र
[ 1913 -1995 ]

 

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश