भाषा राष्ट्रीय शरीर की आत्मा है। - स्वामी भवानीदयाल संन्यासी।
 
विडम्बना  (काव्य)       
Author:संजय भारद्वाज

ऐसा लबालब
क्यों भर दिया तूने,
बोलता हूँ तो
चर्चा होती है,
चुप रहता हूँ तो
और भी अधिक
चर्चा होती है!

संजय भारद्वाज, पुणे
ई-मेल: writersanjay@gmail.com

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