मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
मातृ-दिवस | 14 मई
 
 

मातृ-दिवस( Mother's Day). कुछ बरस पहले तक 'मदर'ज़ डे' भारतीयों के लिए विशेष अर्थ नहीं रखता था चूंकि हमारे माता-पिता तो अधिकतर हमारे साथ ही रहा करते थे लेकिन नई सदी में सब कुछ जैसे परिवर्तित होता जा रहा है - हमारी सभ्यता, संस्कृति, मर्यादाएं और परम्पराएं भी अछूती न रह सकी यथा भारतीय संस्कृति में प्रवेश हुआ 'मदर डे' का।


हमारे पूर्वजों ने संभवत: इस 'मदर'ज़ डे' व 'फादर'ज़ डे' का कोई प्रावधान शायद इसलिए नहीं रखा कि वे ऐसा कोई दिन आएगा, इसकी कल्पना ही नहीं कर पाए होंगे?

वर्तमान में भारत पश्चिम का अंधानुकरण इस भांति कर रहा है कि हर व चीज जो पश्चिम में होती है वह भारत में भी होती है बिना उनके आधार, कारण और वैज्ञानिक-पक्ष को समझे।

अब 'मदर डे' को ही ले लें। पश्चिम के लोग साधन-सम्पन्न और आत्म-निर्भर थे व संयुक्त परिवारों की अपेक्षा छोटे परिवारों को पसंद करते थे। उनके माँ-बाप उनके साथ नहीं रहते थे यथा 'मदर डे' व 'फादर'ज़ डे' जैसे दिन उन्हें अपने माता-पिता की स्मृति करवा देते थे और इसी बहाने वे सम्पर्क में रहते थे। हमारे यहाँ संयुक्त परिवार थे जब हरदम साथ ही रहते थे तो ऐसे दिनों की हमें भला क्या आवश्यकता होती? हाँ, आज के बदलते परिवेश जिसमें हम अपना लगभग सब कुछ विस्मृत कर चुके हैं तो हम भी 'मदर डे', 'फादर डे' इत्यादि वाले ढर्रे पर चलने को बाध्य हैं।


लीजिए, माँ से संबंधित कुछ पठनीय सामग्री का आनंद लें:


माँ कह एक कहानी | कविता

माँ - मुन्नवर राना के अश़आर

माँ - जगदीश व्योम की कविता

मदर'ज़ डे | लघुकथा

लायक बच्चे | लघुकथा

 

 
बेटियों की माँ

हालांकि मैं सभी तरह के "डे (मदर्स-डे)" में विश्वास नहीं करती पर जैसे कि मदर्स-डे पर सम्पूर्ण ‘सोशल मीडिया' अपनी माँ को याद कर रहा है। भूले-भटके मैंने भी आज जब मुड़कर देखा तो मेरी सफलता की सीढ़ियों को अपने कंधों पर थामे हुए पीछे सिर्फ मेरी बूढी और कमज़ोर माँ दिखाई दी। मैं नहीं कहती कि मेरी माँ सबसे अच्छी है, माँयें तो होती ही अच्छे होने के लिए हैं।

 

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